Sunday, December 21, 2014

घर वापसी घर बदर या काला पानी ………

घर वापसी घर वापसी घर वापसी …………हर तरफ घर वापसी का शोर है , अच्छा होता ये घर वापसी उन भइये मुम्बईकरो की होती जो आये दिन यू पी बिहार मूल के  होने के कारण मनसे ,शिव सेना के समर्पित कार्यकर्ताओ से जूते खाते है फिर भी देश में (गाँव में ) पक्का माकन बनवाने और अब भी गाँव में इन्तजार कर रही मास्टर की लड़की के सामने से अपनी बाइक पर बैठ कर टसन  मारने  का सपना सजोये हुए गाली खाकर भी मुंबई को  ढो रहे है , अच्छा  होता की मुंबई में जगह जगह तम्बू लगाकर बिहारियों और यू पी के भइयों को घर लाने  की बात चल रही होती उन्हें उनके घर पर रोजगार मुहैया कर उनको उनके असली घर की ओर मोड़ दिया जाता और वड़ापाव की जगह लिट्टी चोखे से उनकी भूख को तृप्त किया जाता , लेकिन ये घर वापसी कुछ खास है निसंदेह ये घर वापसी ही है क्योकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की भारत की बहुत सी आबादी ने कभी न कभी  धर्म परिवर्तन किया और वो मुस्लमान या क्रिस्चियन बने यहाँ पर बौध जैन सिखों का वर्णन  करना सही नहीं होगा क्योकि ये धर्म इम्पोर्टेड नहीं है ये सब मेड  इन इंडिया ही है जो धर्म इम्पोर्टेड है वो है इस्लाम और क्रिस्चियन  …हम भारतीयों को हमेशा इम्पोर्टेड चीज़ भाई है  बहार की चीजो पर विश्वास भी रहा है फिर वो चाहे मर्फी रेडिओ हो या जर्मनी की मशीने भाई बाहरी है तो टिकाऊ होंगी ही  खैर बात भी सही है प्रोडक्ट की तो नहीं पता लेकिन  जो इम्पोर्टेड धर्म आये वो जरुर देसी धर्मो से बेहतर थे मसलन इन धर्मो में जाती के आधार  पर मस्जिदे और गिरजाघर अलग नहीं थे परन्तु देसी धर्मो में मरासियों के लिए गुरद्वारे अलग थे , बौध धर्म अपने घर में ही बेगाना था जैन धर्म साहुकारो तक सिमित था और  वैस्नव  धर्म  का प्रचार कम था व आर्य समाज धर्म पढ़े लिखे लोगो की दीवारों में ही कैद रहा और हिन्दुओ में तो न ही आप कुछ पूछे और न ही मै  बताने के मूड में हु इनका नाम ही काफी है बस नाम ले लीजिये गुण दोस सब सामने ही है .जब गरीब नवाज़ ने अपने हाथो में चिमटा पकड़ा और सूफी अंदाज़ में नबी के गुण गान किये तो न जाने कितने हिन्दुओ द्वारा घोषित किये गए अछूत हाथ में झाड़ू और शारीर पर सिर्फ फटे कपडे की लंगोटी लपेटे नबी के हो गए . नबी के होते ही उनकी किस्मत बदल गई जो अछूत  अपने आप को पुराने जन्म के कर्मो का फल भुगतने के लिए आधी जिंदगी जानवर से भी बदतर हालत में गुजारी उनके लिए नबी का नाम किसी चमत्कार से कम नहीं था वो जिंदगी भर राम राम रटते रहे लेकिन उनका उद्धार नहीं हुआ नबी के एक बार के जाप ने उन्हें सारे पापो से मुक्त कर दिया जो लोग दो बित्त कपडा सिर्फ अपने जननांग छिपाने के लिए पहनते थे वो आब २-२ मीटर का हरा साफा बंधे हुए थे जिनको मंदिरों से दसियों फीट दूर रहने को कहा गया था वो मस्जिदों के गुम्बदो के निचे थे जिन्होंने कभी ताज़ी  रोटी नहीं खाई थी वो अरब के खजूरो का मजा ले रहे थे और सोच रहे थे जिस राम को जिंदगी भर दिल ही दिल में पूजा उस से कोई फायदा न हुआ और नबी का नाम एक बार जुबान पर लाये  करिश्मा हो गया धीरे धीरे ये करिश्मा न जाने कितने अछूतों  को भाया और सब नबी का नाम ले ले कर तर गए जिनके श्लोक मंत्र आदि पढना तो दूर सुनना भी पाप था वो कलमे पढ़ रहे थे ..जिनको तेज़ बोलने का अधिकार नहीं था वो ताल बजाकर कव्वालियाँ गा रहे थे नबी के नाम का ये चमत्कार फैलता गया और लोग धीरे धीरे अपना घर छोड़ते गए .अकबर काल में भक्ति आन्दोलन के अंतर्गत नबी के   इस चमत्कार को रोकने का पूरा इन्तजाम किया गया फिर अकबर शाशन काल में ही कुछ पादरी धर्म प्रचार हेतु भारत पहुचे तब तक नबी के वो चहेते जो खुद जुल्म झेलते थे सदियों बाद खुद अपनों में जातियां बनाकर बुनकरों भिस्तियो और सब्ज्फरोशो को प्रताड़ित करने लगे कमोवेश मुसलमानों की भी वही स्थिति होने लगी जो हिन्दुओ की थी फिर भी मुस्लमान काफी बेहतर थे , पादरियों ने जनजातियो को टारगेट किया जंगल जंगल घूम कर गॉड के बेटे इशु का प्रचार प्रसार किया और बताया की जल्द ही इशु तुम्हारे कष्ट हरने आएगा और इशु ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में अ भी गए फिर क्या था खुलने लगे जंगलो में स्कूल  बटने लगी मुफ्त किताबे और विदेशी एंटीबायोटिक दवाये और फिर एक बार वो अछूत जो नबी के  नहीं हो पाए थे वो इशु के साथ हो लिए जिनको हिन्दू देखना भी नहीं पसंद करते थे जिनको देखने मात्र से उनका पूरा दिन अशुभ हो जाया करता था आज वो फादर बने बैठे है और अंग्रेजी शाशन में अघोसित खुदा भी . दो पीढ़ी पहले जिस आदमी को अछूत होने के कारण देखना नहीं पसंद करते थे आज उसी के बेटे को फादर फादर कह कह कर तलुए चाटने को तैयार थे क्योकि वो आज किसी बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल का प्रिंसिपल है …इस तरह से न जाने कितने लोगो ने अपना घर छोड़ दिया अजी घर भी नहीं टुटा गिरा हुआ फूस का छप्पर कहिये और इसकी जगह आलीशान घरो में रहने लगे
सालो बाद आज फिर घर बदर हो रहा है बीते दिनों कई जगह घर वापसी का कार्यक्रम संपन्न हुआ और इन कार्यक्रमों में दबे शोषित वंचितों ने भी खूब जमकर घर वापसी की इतनी पीढियों के बाद आज अचानक घर वापसी समझ से परे है बहरहाल इन सब से जो दल सबसे ज्यादा खुश  है वो है स्वघोषित गैर सम्प्रदाईक दल कांग्रेस  क्योकि इसका सीधा फायदा उनको होने वाला है और जो दल सबसे ज्यादा परेशान  है वो है गैर सम्प्रदाईक दलों द्वारा जबरदस्ती घोषित सम्प्रदाईक दल बीजेपी .बीजेपी लोकसभा में स्पष्ट बहुमत पाने के बाद सिर्फ विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहती थी क्योकि मोदी जी अच्छी तरह से जानते है की सिर्फ धर्म के सहारे १० साल वाला उनका सपना पूरा नहीं हो सकता दुबारा सरकार बनाने के लिए विकास जरुरी है सो वो लग गए विकास हेतु परन्तु देश में मराठी गोडसे को आदर्श मानने वालो की भी कमी नहीं है इतने दिनों बाद पहली बार भगवा सरकार बनते देख गोडसे के लाल भी जगह जगह खड़े हो गए , ऐसा नहीं की बीजेपी की पहली बार सरकार बनी है इस से पहले भी केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी लेकीन ये सरकार उस मोदी की है जिस मोदी को क्रोसिये से बुनी सफ़ेद गोल टोपी से परहेज है और वो सरकार अटल बिहारी बाजपेई की थी जो रमजानो में नबी के हो जाते थ और मुहर्रम में हुसैन के , सफ़ेद गोल टोपी पहनकर अफ्तारी करना और काली गोल टोपी पहन मलीदा खाना उनके लिए कोई नई बात नहीं थी शायद इसी कारण  गोडसे के लालो ने कोस कोस कर उनके लिए १३ तारीख को अपशगुन बना दिया .
इतिहास अपने आप को दोहराता है ऐसा नहीं है की  यह घर बदर का कार्यक्रम पहली बार चला है 1917 18 के करीब मुंशीराम नाम के एक व्यक्ति ने शुद्धि आन्दोलन चलाया जिनको हम स्वामी श्राधानंद के नाम से जानते है आप थे तो आर्य समाज के परन्तु इनको हिन्दू धर्म में भी बड़ी रूचि थी गाँधी जी को महात्मा की उपाधि भी आप ने ही दी थी इन्होने न जाने कितने मुसलमानों को फिर से हिन्दू धर्म अपनाने को तैयार किया उनकी घर वापसी करवाई  , इस्लाम के उदय  के डेढ़ हजार साल बाद भारत में इस्लाम हिन्दुओ की संगत में पथ भ्रमित हो चुका था और ब्राह्मणों और राजपूतो की तर्ज पर पठानों का वर्चस्व चरम पर था इनके द्वारा  इस्लाम के अंतर्गत आने वाली कई नीची जातियों के लोगो का शोषण भी  किया गया इन मुस्लिम नीची जातियों ने पठानों के अत्याचारों से  निजात पाने के लिए शुद्धि  आन्दोलन में शुद्ध होकर फिर से एक बार घर वापसी की लेकिन ये घर वापसी घर वापसी नहीं बल्कि काला पानी साबित हुई क्योकि हिन्दुओ में मात्र हिन्दू धर्म में अ जाना काफी नहीं धर्म में आने के बाद उन्हें जाती में भी घुसना पड़ता है और यही से धर्म के काले पानी की शुरुआत होती है हिन्दू मुसलमानों दोनों के पचड़ो से निज़ात पाने के लिए अंग्रेजी शासन में लोग ईसाइयत की तरफ बढे , आज फिर इतिहास की पुनराव्रती हो रही है पहले भी कांग्रेस की मुस्लिम्तुस्तीकरण की निति आलोचना का विषय थी और अभी भी कांग्रेस ही निशाने पर है बस फर्क इतना है की पहले एक महात्मा  कांग्रेस में था और अब एक सह्जादा . पहले 1926 के लगभग में भी आज के आगरा जैसा ही धर्म परिवर्तन का शोर शराबा पुरे देश में हुआ था और मुस्लिम मुल्लाओ की नींद उड़ गई थी फर्क बस इतना है की आज कुछ मुस्लिम मर्दों ने पहले धर्म बदला और फिर पलट गए लेकिन उस अंग्रेजी शासन में असगरी बेगम नाम की औरत ने धर्म परिवर्तन कर धमाल मचा दिया था स्वामी श्राधानंद ने उनको शुद्ध  कर उनका नाम रखा शांति देवी लाख दबाव के बाद भी असगरी बेगम टस से मस होने को तैयार नहीं ये असगरी बेगम उर्फ़ शांति देवी पुराने ज़माने की अभिनेत्री तबस्सुम की माँ है . इस घटना और शुद्धि आन्दोलन के असर को देखते हुए रशीद नाम के एक शख्स ने स्वामी श्राधानंद की हत्या कर दी गई .
असगरी बेगम हिन्दू बन तो गई लेकिन उनको कौन सी जाती मिली होगी यह प्रश्न मेरे मन में हमेशा रहता है हालाँकि आर्य समाज अपनाने के बाद जाती की जरुरत नहीं पड़ती शायद उन्होंने हिन्दू होने के बाद आर्य समाज अपनाया होगा परन्तु आज जो घर वापसी हो रही है उसमे आर्य समाज का विकल्प ही नहीं है यह घर वापसी पूर्ण रूप से सनातनी है और इसके राईट भी इन्ही के पास है आखिर किन जातियों में भेजेंगे घर वापसी के बाद मुसलमानों को, ब्राह्मण बनाया तो ठीक लेकिन ब्राह्मण तो भगवन बना सकता है राजपूत का खून ज्यादा लाला होता है इस कारण ये घर वापसी किये हुए लोग राजपूत भी नहीं बन सकते, बनिया बने और उनके साथ रोटी बेटी का साथ करे इतनी इन घर आये मेहमानों की माली हालत नहीं, फिर तो बस एक ही विकल्प बचता है वो है गाँधी के हरिजनों का अगर ये घर वापसी किये हुए लोग गाँधी के हरिजन बनते है तो यह घर वापसी नहीं घर बदर है (एक सजा)और  निश्चय ही ये इनका धार्मिक कला पानी होगा .
                                                                                                                                शुभम पैलवी